लहसुन के फायदे…….

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लहसुन सिर्फ खाने के स्वाद को ही नहीं बढ़ाता बल्कि शरीर के लिए एक औषधी की तरह भी काम करता है।इसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, लवण और फॉस्फोरस, आयरन व विटामिन ए,बी व सी भी पाए जाते हैं। लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है। भोजन में किसी भी तरह इसका सेवन करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है आज हम बताने जा रहे हैं आपको औषधिय गुण से भरपूर लहसुन के कुछ ऐसे ही नुस्खों के बारे में जो नीचे लिखी स्वास्थ्य समस्याओं में रामबाण है।

1– 100 ग्राम सरसों के तेल में दो ग्राम (आधा चम्मच) अजवाइन के दाने और आठ-दस लहसुन की कुली डालकर धीमी-धीमी आंच पर पकाएं। जब लहसुन और अजवाइन काली हो जाए तब तेल उतारकर ठंडा कर छान लें और बोतल में भर दें। इस तेल को गुनगुना कर इसकी मालिश करने से हर प्रकार का बदन का दर्द दूर हो जाता है।

2– लहसुन की एक कली छीलकर सुबह एक गिलास पानी से निगल लेने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल का स्तर नियंत्रित रहता है।साथ ही ब्लडप्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।

3– लहसुन डायबिटीज के रोगियों के लिए भी फायदेमंद होता है। यह शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में कारगर साबित होता है।

4– खांसी और टीबी में लहसुन बेहद फायदेमंद है। लहसुन के रस की कुछ बूंदे रुई पर डालकर सूंघने से सर्दी ठीक हो जाती है।

5– लहसुन दमा के इलाज में कारगर साबित होता है। 30 मिली लीटर दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है। अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है।

6– लहसुन की दो कलियों को पीसकर उसमें और एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर मिला कर क्रीम बना ले इसे सिर्फ मुहांसों पर लगाएं। मुहांसे साफ हो जाएंगे।

7– लहसुन की दो कलियां पीसकर एक गिलास दूध में उबाल लें और ठंडा करके सुबह शाम कुछ दिन पीएं दिल से संबंधित बीमारियों में आराम मिलता है।

8– लहसुन के नियमित सेवन से पेट और भोजन की नली का कैंसर और स्तन कैंसर की सम्भावना कम हो जाती है।

9– नियमित लहसुन खाने से ब्लडप्रेशर नियमित रहता है। एसीडिटी और गैस्टिक ट्रबल में भी इसका प्रयोग फायदेमंद होता है। दिल की बीमारियों के साथ यह तनाव को भी नियंत्रित करती है।

10– लहसुन की 5 कलियों को थोड़ा पानी डालकर पीस लें और उसमें 10 ग्राम शहद मिलाकर सुबह -शाम सेवन करें। इस उपाय को करने से सफेद बाल काले हो जाएंगे।

11- यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है। इसको पीसकर त्वचा पर लेप करने से विषैले कीड़ों के काटने या डंक मारने से होने वाली जलन कम हो जाती है।

12- जुकाम और सर्दी में तो यह रामबाण की तरह काम करता है। पाँच साल तक के बच्चों में होने वाले प्रॉयमरी कॉम्प्लेक्स में यह बहुत फायदा करता है। लहसुन को दूध में उबालकर पिलाने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। लहसुन की कलियों को आग में भून कर खिलाने से बच्चों की साँस चलने की तकलीफ पर काफी काबू पाया जा सकता है।

13- लहसुन गठिया और अन्य जोड़ों के रोग में भी लहसुन का सेवन बहुत ही लाभदायक है।

लहसुन की बदबू-

अगर आपको लहसुन की गंध पसंद नहीं है कारण मुंह से बदबू आती है। मगर लहसुन खाना भी जरूरी है तो रोजमर्रा के लिये आप लहसुन को छीलकर या पीसकर दही में मिलाकर खाये तो आपके मुंह से बदबू नहीं आयेगी। लहसुन खाने के बाद इसकी बदबू से बचना है तो जरा सा गुड़ और सूखा धनिया मिलाकर मुंह में डालकर चूसें कुछ देर तक, बदबू बिल्कुल निकल जायेगी।

यह आयुर्वेदिक चाय सबसे तेज़ मोटापा कम करती है

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यदि आप बगैर व्यायाम, योगासन आदि किए या अधिक कठिन डायटिंग किए बिना मोटापा घटाना चाहते हैं या अपने शरीर को अच्छे आकार (shape) में रखना चाहते हैं तो आपके लिए यहाँ है सरल सीधा व कारगर आयुर्वेदिक उपाय; जिसे आप घरेलू नुस्खा भी कह सकते हैं ।

वज़न कम करने में आयुर्वेद के उपाय बहुत सहायक व असरदार है आयुर्वेदिक विशेषज्ञों की सलाह है कि यदि हम रोजाना कुछ खास किस्‍म के मसालों का प्रयोग नियमित समय पर करें, तो हमारा वजन काफी कम हो सकता है । इन मसालों में जीरा, हरी धनिया, काली मिर्च, सौंफ और दालचीनी आदि शामिल है, ये मसाले ना केवल पाचन क्रिया को दुरुस्‍त करते हैं, बल्‍कि शरीर से दूषित पदार्थ भी बाहर निकालने में सहायक होते हैं। इनसे बनी चाय नियमित रूप से पीने पर आपकी त्‍वचा भी साफ एवं स्वस्थ्य हो जाएगी ।

आइये देखें, इनकी चाय कैसे बनाए, जो मोटापा कम करे ।

सामग्री- 1 चम्‍मच जीरा, 1 चम्‍मच साबुत धनिया, 1 चम्‍मच सौंफ, 2 बारीक स्‍लाइस अदरक, 1 चम्‍मच काली मिर्च के दाने, 5-7 लौंग, 2 इंच दालचीनी का टुकड़ा एवं 1 लीटर पानी ।

विधि – सबसे पहले पानी को सभी सामग्रियों के साथ उबाल लें । जब पानी अच्‍छी तरह से उबलकर आधा रह जाय तब इसे 5 से 10 मिनट तक ढँक कर रख दें । उसके बाद इसे छानेंगे तो 4 से 6 कप चाय बनेगी, जिसे आवश्यकतानुसार 4 से 6 लोग भी पी सकते हैं या आप दिन में 3 बार दो दिन तक भी पी सकते हैं।

Note: आयुर्वेद चाय आयुर्वेद स्टोर में उपलब्ध है

आंखों की रौशनी जल्दी बढाने के लिये घरेलू उपचार….

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आज कल कई छोटे छोटे बच्चों के नाक पर चश्मा चढ़ा देख कर बड़ा ही दुख होता है कि आगे चल कर इनका क्या होगा। बुढापे में चश्मा चढे़ तो इसमें कोई अचरज की बात नहीं है लेकिन छोटे बच्चों को चश्मा चढे तो कहीं ना कहीं उनके माता-पिता को भी चिंता होती है। अगर आप चाहते हैं कि आपकी या फिर आपके बच्चे की आंखों की रौशनी बढ जाए तो आपको एक घरेलू उपचार आजमाना होगा, जिससे उनकी आंखों पर लगेचश्मे का नंबर कम हो सकता है ! यह एक साधारण और असरदार उपचार है, जिसका प्रयोग करते ही आपको तुरंत असर दिखेगा।
सामग्री- बादाम- बड़ी सौंफ चीनी या मिश्री और किसा हुआ नारियल…
बनाने की विधि- समान् मात्रा में बादाम, सौंफ, नारियल और मिश्री ले कर पाउडर बना लें। इस मिश्रण को कांच के जार में रखें और प्रयोग करें। प्रयोग करने की विधि- रात को सोने से पहले 250 एमएल दूध में 10 ग्राम तैयार मिश्रण मिला लें। ऐसा ही 40 दिनों तक करें और आप पाएंगे कि आपके आंखों की रौशनी बढ़ने लग जाएगी। इसका सेवन करने के दो घंटे तक पानी ना पियें।

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रक्ताल्पता दूर कीजिये [ एनीमिया ] खून की कमी

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अक्सर थकान, कमजोरी रहना, त्वचा का रंग पीला पड़ जाना, हाथ-पैरों में सूजन आदि एनीमिया के लक्षण हैं। इस समस्या से पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा परेशान रहती हैं। जिन लोगों के खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा बहुत कम हो जाती है, वो लोग एनीमिया के शिकार हो जाते हैं।एनीमिया के रोगी को लौह तत्व, विटामिन बी, फोलिक एसिड की कमी होती है। कभी-कभी अनुवांशिक कारणों से भी यह रोग हो सकता है। यदि आपके शरीर में भी खून की कमी है तो अपने आहार पर खास ध्यान दें। चलिए, जानते हैं किन चीजों को खाने से खून बढ़ जाता है और एनीमिया दूर हो जाता है।

1. एक गिलास सेब का जूस लें। उसमें एक गिलास चुकंदर का रस और स्वादानुसार शहद मिलाएं। इसे रोजाना पिएं। इस जूस में लौह तत्व अधिक मात्रा में होता है।

2. 2 चम्मच तिल 2 घंटों के लिए पानी में भिगो दें। पानी छान कर तिल को पीसकर पेस्ट बना लें। इसमें 1 चम्मच शहद मिलाएं और दिन में दो बार इसे खाएं।

3. पके हुए आम के गूदे को अगर मीठे दूध के साथ लिया जाए तो खून बढ़ने लगता है।

4. दिन में दो बार ठंडे पानी से नहाएं। सुबह के समय सूरज की रोशनी में बैठें।

5. चाय और कॉफी पीना थोड़ा कम कर दें, क्योंकि यह शरीर को आयरन सोखने से रोकता है।

6. खून बढ़ाने वाले आहार गेहूं, चना, मोठ, मूंग को अंकुरित कर नींबू मिलाकर सुबह नाश्ते में खाएं।

7. सितोपलादि चूर्ण 50 ग्राम, आमल की रसायन 50 ग्राम, अश्वगंधा सत्व 50 ग्राम, शतावर चूर्ण 10 ग्राम, सिद्धमकर ध्वज 5 ग्राम, लौहभस्म 100 पुटी 10 ग्राम, अष्ट वर्ग चूर्ण 25 ग्राम, शहद 300 ग्राम। इस योग को 5 से 10 ग्राम मात्रा में सुबह-शाम चाटकर मीठा दूध पिएंं। इसके सेवन से खून बढ़ता है।

8. नमक और लहसुन का नियमित सेवन खाने के साथ चटनी के रूप में करें। हीमोग्लोबिन की कमी दूर हो जाती है।

9. अनंतमूल, दालचीनी और सौंफ की समान मात्रा लेकर चाय बनाकर पिएं। दिन में एक बार लें। खून की कमी दूर हो जाएगी।

10. भुट्टे एनीमिया के रोगियों के लिए पौष्टिक होते हैं। इन्हें सेंककर खाने से इसके दाने बड़े स्वादिष्ट लगते हैं। मक्के के दाने उबाल कर खाने से भी खून बढ़ता है।

11. मूंगफली के दाने गुड़ के साथ चबा-चबा कर खाएं।

12. शरपुंखा की पत्तियों और फलियों से लगभग 20 मिली रस में 2 चम्मच शहद मिला लें। इस मिश्रण को सुबह-शाम लें। इससे खून साफ होता है और बढ़ता है।

13. फालसा खाने से खून बढ़ता है। फालसे के फल या शर्बत को सुबह-शाम लेने से बहुत जल्दी आराम मिलता है।

14. हंसपदी के पौधे का चूर्ण बनाकर शहद के साथ उपयोग करने से खून की शुद्धि होती है और शरीर में साफ खून प्रवाहित होने लगता है। इस चूर्ण को शहद के साथ चाटने या पानी के साथ लेने से खून में वृद्धि होती है और एनीमिया की शिकायत भी दूर हो जाती है।

15. पालक, सरसों, बथुआ, मटर, मेथी, हरा धनिया, पुदीना और टमाटर अपने भोजन में जरूर शामिल करें।

16. जामुन और आंवले का रस समान मात्रा में मिलाकर पीने से शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है। खून की कमी नहीं होती है।

17. रोजाना एक गिलास टमाटर का रस पीने से भी खून की कमी दूर होती है। टमाटर का सूप भी बनाकर लिया जा सकता है।

18. सिंघाड़ा शरीर को शक्ति प्रदान करता है और खून बढ़ाता है। इसमें कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व पाए जाते हैं। कच्चे सिंघाड़े का सेवन करने से शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा तेजी से बढ़ती है।

19. पपीता, अंगूर, अमरूद, केला, सेब, चीकू और नींबू का सेवन करें।

20. अनाज, दालें, मुनक्का, किशमिश और गाजर का सेवन करें। साथ ही, रात में सोने से पहले पिंड खजूर दूध के साथ लें।

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मुंह के छाले ठीक करने से लेकर HIV कंट्रोल करने में सक्षम है केला

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केले के बारे में दुनिया जानती है। किसी शहर या कस्बे का कोई भी बाजार ऐसा नहीं जहां केला बिकते हुए ना मिलें। घर-घर में पसंद किया जाने वाला केला 10 हजार साल से हमारे जीवन का हिस्सा है और आने वाले सैकड़ों हजारों सालों तक इस फल को हम सराहते रहेंगे। महज एक फल के तौर पर जाने वाले केले के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इसके पौधे में औषधीय गुणों का खज़ाना है। चलिए आज जानते हैं आधुनिक औषधि विज्ञान जगत ने केले के किन-किन गुणों को क्लिनिकल तौर पर प्रमाणित किया है। क्या सिर्फ स्टार्च से भरपूर होने के अलावा केले में और भी कुछ है जो आम तौर पर ज्यादा लोगों को नहीं पता?

मुंह के छाले ठीक करता है
कई आर्टिफिसल और केमिकल्स वाली दवाएं जैसे एस्पिरिन, इण्डोमेथासिन, सिस्टियामाइन, हिस्टामाइन आदि के सेवन के बाद कई लोगों को मुंह में छाले आ जाते हैं। आधुनिक शोधों से जानकारी मिलती है कि कच्चे केले को सुखाकर चूर्ण बना लिया जाए और इस चूर्ण को चाटा जाए, तो मुंह के छालों को ठीक कर देता है।

पथरी बाहर निकालता है
केले के तने का रस पथरी में बेहद कारगर है। एक शोध के अनुसार केले के तने का रस किडनी में होने वाली पथरी, खास तौर से ओक्सालेट की बनी पथरी को तोड़कर पेशाब मार्ग से बाहर निकाल देता है।
एचआईवी कंट्रोल करता है
अनेक शोधों के परिणामों पर नजर डाली जाए, तो जानकारी मिलती है कि केले में वायरस नियंत्रण के जबरदस्त गुण होते हैं। कुछ शोध तो इसे MRSA और HIV के नियंत्रण तक के लिए उपयोगी मानते हैं।

नई कोशिकाओं के निर्माण में सहायक
शोधों से यह भी जानकारी मिलती है कि केले का चूर्ण ना सिर्फ छालों की जगहों पर नई कोशिकाओं के निर्माण को प्रोत्साहित करता है, बल्कि इसमें पाया जाने वाला फ़्लेवेनोयड ल्युकोसायनायडिन अल्सर (छाले) बनाने वाले अल्सरोजेन को भी रोकता है।

टाइप 1 डायबिटीज़ के रोगियों के लिए फायदेमंद
केले के फूल टाइप 1 डायबिटीज़ के रोगियों के लिए कारगर उपाय है। अनेक शोधों के जरिए यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इसके फूल का रस तैयार करके टाइप 1 डायबिटीज रोगियों को दिया जाए, तो यह रक्त में शर्करा की मात्रा कम करने में मदद करता है।

डायबिटीज़ नियंत्रण करता है
केले की जडों और कच्चे केले में भी डायबिटीज़ नियंत्रण के लिए जबरदस्त गुण होते हैं। अनेक वैज्ञानिकों ने केले के पौधे के इन हिस्सों को डायबिटीज़ नियंत्रण के लिए उपयोग में लाई जाने वाली औषधि ग्लिबेनक्लेमाईड के समान पाया है।

त्वचा रोगों को ठीक करता है
कई क्लिनिकल स्टडीज़ से यह भी ज्ञात हुआ है कि केले की पत्तियां त्वचा पर होने वाले खतरनाक बैक्टीरियल इन्फेक्शन्स को रोकने के लिए कारगर साबित हुई हैं। पत्तियों का रस अनेक तरह के त्वचा विकारों को दूर करने में सक्षम है।

दस्त रोकता है
ताजा हरा केला दस्तरोधी होता है। केला पकने से पहले जब हरा होता है, तो इसमें ऐसे स्टार्च पाए जाते हैं जो दस्त रोकने में मदद करते हैं। बांग्लादेश के देहाती इलाकों में आज भी नवजात शिशुओं को दस्त होने पर कच्चे केले को कुचलकर चटाते हैं।

टेस्टोस्टेरोन को सक्रिय नहीं होने देता
केले का छिलका प्रोस्टेट ग्रंथि की वृद्धि को रोकता है। टेस्टोस्टेरोन की वजह से अक्सर प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है और अनेक शोध बताती हैं कि केले का छिलका टेस्टोस्टेरोन को सक्रिय नहीं होने देता।

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शक्तिवर्धक नुस्खे: ये शरीर को ताकतवर बना देंगे

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जिस तरह मोटापा एक परेशानी है। ठीक वैसे ही अधिक दुबलापन या कमजोरी भी कई लोगों के लिए समस्या का कारण बन जाता है। ऐसे में कई बार सुडौल शरीर न होने के कारण आत्मविश्वास में कमी महसूस होने लगती है। अगर आपके साथ भी यह समस्या है, आप बहुत अधिक कमजोरी या दुबलेपन से परेशान हैं तो अपनाइए ये नुस्खे… 1- नाश्ते में सुबह आलू के दो पराठें के साथ लगभग 50 ग्राम दही का सेवन करें, यह ऊर्जा का अच्छा स्रोत है। 2- 40 ग्राम मूँगफली के दाने सेंककर, 10 ग्राम गुड़ के साथ चबा-चबाकर नाश्ते के तौर पर सेवन करें, ये ऊर्जा का पर्याप्त भण्डार है।3- रोजाना 10-12 गिलास पानी पीना चाहिए, साथ ही नाश्ते के रूप में ऐसे पदार्थ लें, जिसमें प्रत्येक से 200 कैलोरी प्राप्त हो।4- नाश्ते में अंकुरित अनाज लें। चोकर से बना केक खाएं क्योंकि चोकर मेग्नेशियम व अन्य पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं।5- सोते समय एक गिलास मीठे गुनगुने गर्म दूध में एक चम्मच शुद्ध घी डालकर पीना चाहिए।6- 2 चम्मच प्याज का रस, 1 चम्मच शहद, चौथाई चम्मच घी मिलाकर सेवन करने से ताकत बढ़ती है।7- सफेद मूसली या धोली मूसली का चूर्ण बनाकर। एक चम्मच चूर्ण और एक चम्मच पिसी मिश्री मिलाकर। सुबह व रात को सोने से पहले गुनगुने दूध के साथ एक चम्मच मात्रा में लेने से कमजोरी दूर हो जाती है।8-दूध की मलाई तथा पिसी मिश्री जरूरत के अनुसार मिलाकर खाना चाहिए, यह अत्यंत शक्तिवर्धक है।9- छाछ से निकाला गया ताजा माखन तथा मिश्री मिलाकर खाना चाहिए।10- बादाम को पत्थर पर घिसकर दूध में मिलाकर पीना चाहिए, इससे अपार बल मिलता है।

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कैंसर रोगियो के लिए रामबाण इलाज जवारे का रस

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जब गेहूं के बीज को अच्छी उपजाऊ जमीन में बोया जाता है तो कुछ ही दिनों में वह अंकुरित होकर बढ़ने लगता है और उसमें पत्तियां निकलने लगती है। जब यह अंकुरण पांच-छह पत्तों का हो जाता है तो अंकुरित बीज का यह भाग गेहूं का ज्वारा कहलाता है। औषधीय विज्ञान में गेहूं का यह ज्वारा काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। गेहूं के ज्वारे का रस कैंसर जैसे कई रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है।प्रकृति ने हमें स्वस्थ, ऊर्जावान, निरोगी और आयुष्मान रहने के लिए हमें अनेक प्रकार के पौष्टिक फल, फूल, मेवे, तरकारियां, जड़ी-बूटियां, मसाले, शहद और अन्य खाद्यान्न दिये हैं। ऐसा ही एक संजीवनी का बूटा है गेहूँ का ज्वारा। इसका वानस्पतिक नाम “ट्रिटिकम वेस्टिकम” है। डॉ. एन विग्मोर ज्वारे के रस को “हरित रक्त” कहती है। इसे गेहूँ का ज्वारा या घास कहना ठीक नहीं होगा। यह वास्तव में अंकुरित गेहूँ है।

गेहूँ का ज्वारा एक सजीव, सुपाच्य, पौष्टिक और संपूर्ण आहार है। इसमें भरपूर क्लोरोफिल, किण्वक (एंजाइम्स), अमाइनो एसिड्स, शर्करा, वसा, विटामिन और खनिज होते हैं। क्लोरोफिल सूर्यप्रकाश का पहला उत्पाद है अतः इसमें सबसे ज्यादा सूर्य की ऊर्जा होती है और भरपूर ऑक्सीजन भी।

पोषक तत्व:-

गेहूँ के ज्वारे क्लोरोफिल का सर्वश्रेष्ठ स्रोत हैं। इसमें सभी विटामिन्स प्रचुर मात्रा में होते हैं जैसे विटामिन ए, बी1, 2, 3, 5, 6, 8, 12 और 17 (लेट्रियल); सी, ई तथा के। इसमें केल्शियम, मेग्नीशियम, आयोडीन, सेलेनियम, लौह, जिंक और अन्य कई खनिज होते हैं।
लेट्रियल या विटामिन बी-17 बलवान कैंसररोधी है और मेक्सिको के ओएसिस ऑफ होप चिकित्सालय में पिछले पचास वर्ष से लेट्रियल के इंजेक्शन, गोलियों और आहार चिकित्सा से कैंसर के रोगियों का उपचार होता आ रहा है।

इतिहास:-

प्राचीन काल से ही हिन्दुस्तान के चिकित्सक गेहूँ के ज्वारों को विभिन्न रोगों जैसे अस्थि-संध शोथ, कैंसर, त्वचा रोग, मोटापा, डायबिटीज आदि के उपचार में प्रयोग कर रहे हैं। हमारे कई त्योहारों पर गेहूँ के ज्वारों को उगाने, पूजा करने के रिवाज सदियों से चले आ रहे हैं।
जैसे गणगौर हिन्दुस्तान के कई राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में कुँवारी कन्याओं व सुहागिनों द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार है, जो बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
पहले दिन चैत्र कृष्ण ग्यारस को माताजी की ‘मूठ’ रखी जाती है। बाँस की छोटी-छोटी टोकरियों में गेहूँ के ज्वारे बोए जाते हैं। ज्वारे वाली परंपरागत जगह को माताजी की ‘बाड़ी’ कहते हैं। पूरे सप्ताह से बाड़ी की पूजा-अर्चना कर ज्वारों में पानी दिया जाता है और आरती भी की जाती है। ज्वारे लहराने के साथ ग्राम लक्ष्मी गा ने लगती है- ‘म्यारा हरिया जवारा हो कि गेहूँआ लहलहे…
…और फिर चैत्र शुक्ल चतुर्थी को गणगौर माता बिदा होती है। सजी-धजी शोभायात्रा के साथ तालाब-बावड़ी पर श्रद्धा के साथ ज्वारे विसर्जित किए जाते हैं।
पश्चिमी देशों में गेहूँ के ज्वारों से उपचार की पद्धति डॉ. एन. विग्मोर ने प्रारम्भ की थी। बचपन में उनकी दादी प्रथम विश्व युद्ध में घायल हुए जवानों का उपचार जड़ी-बूटियों, पैड़-पौधों और विभिन्न प्रकार की घासों से किया करती थी।
तभी से उन्होंने जड़ी-बूटियों और विभिन्न घास के रस द्वारा बीमारियों के उपचार और अनुसंधान करना अपना शौक बना लिया। 50 वर्ष की उम्र में डॉ. एन. विग्मोर को आंत में कैंसर हो गया था। जिसके लिए उन्होंने गेहूँ के ज्वारों का रस और अपक्व आहार लिया और प्रसन्नता की बात थी कि एक वर्ष में वे कैंसर मुक्त हो गई। उन्होंने बोस्टन में एन विगमोर इन्स्टिट्यूट खोला जो आज भी काम कर रहा है। तब से लेकर अपनी मृत्यु तक वह गेहूँ के ज्वारे और अपक्व आहार द्वारा रोगियों का उपचार करती रही। उन्होंने इस विषय पर 35 पुस्तकें भी लिखी हैं।

अमाइनो एसिड और उनके कार्य :-
इसमें 8 आवशयक और बचे हुए 16 मेंसे 13 अमाइनो एसिड्स होते हैं। इनके कार्य संलग्न सारिणी में दर्शाये हैं।

अमाइनो एसिड कार्य-लाईसिन- आयुवर्धक-ल्यूसिन- ऊर्जा और नाड़ी तंत्र को संवेदनशील बनाये रखना-ट्रिप्टोफेन- त्वचा और केश का विकास-फिनाइलएलेनीन- थायरॉइड हार्मोन के निर्माण में सहायक-थ्रियोनीन- पाचन-वेलीन- मस्तिष्क और मांसपेशियों में परस्पर सहयोग और सामंजस्य बनाये रखना-मीथियोनीन- यकृत और वृक्क का शोधन-एलेनीन- रक्त के निर्माण में सहायक-आरजिनीन- वीर्यवर्धक-ग्लूटेमिक एसिड- मस्तिष्क को जागरुक रखना-एस्पार्टिक एसिड- ऊर्जा का उत्पादन-ग्लाइसीन- ऊर्जा का उत्पादन-प्रोलीन- ग्लूटेमिक एसिड अवशोषण-सेरीन- मस्तिष्क को ऊर्जावान बनाये रखना-आइसोल्यूसीन- भ्रूण का विकास-हिस्टीडीन- श्रवण और नाड़ी तंत्र की विभिन्न क्रियाओं में सहायक
क्या होते हैं मुक्त कण या फ्री रेडिकल्स :-
शरीर में होने वाली विभिन्न चयापचय क्रियाओं में कुछ व्यर्थ और हानिकारक अणु भी बन जाते हैं। इन अणुओं में इलेक्ट्रोन्स की संख्या प्रोटोन्स की अपेक्षा कम होती है जिससे ये अति सक्रिय तथा अस्थिर होते हैं। इन्हें हम “मुक्त कण” कहते हैं और ये मौका मिलते ही हमारे स्वस्थ अणुओं से इलेक्ट्रोन चुरा लेते हैं, इस क्रिया को ऑक्सीडेशन कहते हैं। इलेक्ट्रोन खो कर हमारे स्वस्थ अणु भी मुक्त कणों की भांति व्यवहार करने लगते हैं। और अपने अंतःकरण में बैठे प्रोटोन्स की इलेक्ट्रोन-पिपासा शांत करने हेतु अपना मुख्य काम छोड़ कर इलेक्ट्रोन्स का जुगाड़ करने निकल पड़ते हैं। इस तरह निरंतर इलेक्ट्रोन चुराने का एक श्रंखला-बद्ध सिलसिला शुरू हो जाता है, जिससे हमारी आयुवृद्धि की गति तेज हो जाती है, त्वचा में झुर्रियां बनने लगती हैं और हम विभिन्न बीमारियों जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अस्थि-संध शोथ, पार्किंसन्स, कैंसर आदि का शिकार हो जाते हैं। मुक्त कण हमारे बाह्य वातावरण और भोजन द्वारा भी शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

प्रति-ऑक्सिकारक या एंटीऑक्सीडेंट:-
मुक्त कणों से रक्षा करने के लिए हमारे शरीर में अनेक अणु जैसे विटामिन-ई, विटामिन-सी, बीटा-केरोटीन, किण्वक आदि होते हैं, जिनमें कई अतिरिक्त इलेक्ट्रोन्स होते हैं और जो बिना अस्थिर हुए मुक्त कणों को इलेक्ट्रोन्स दान देकर उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं। इन्हें हम “प्रति-ऑक्सीकारक” या एंटीऑक्सीडेंट कहते हैं। हमें फलों, सब्जियों युक्त अच्छे आहार से प्रति-ऑक्सिकारक प्राप्त होते हैं तथा हमारे शरीर में भी कई प्रति-ऑक्सीकारक निरंतर बनते रहते हैं। एंटीऑक्सीडेंट आयुवर्धक और आरोग्यवर्धक होते हैं। ये डीएनए की संरचना में विकृति नहीं होने देते हैं, रक्त वाहिकाओं को स्वस्थ रखते हैं और त्वचा को युवा बनाये रखते हैं। गेहूँ के ज्वारे में कई शक्तिशाली प्रति-ऑक्सीकारक होते हैं, परंतु यहां हम चार विशिष्ट प्रति-ऑक्सिकारकों का वर्णन करेंगे।
1.सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज
2.पी4डी1
3.म्यूको-पॉलीसेकराइड्स
4.क्लोरोफिल

सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज:-
सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज (एस ओ डी) एक किण्वक है जो कोशिकाओं का जीर्णोद्धार करता है और कोशिकाओं की सुपरऑक्साइड से होने वाली क्षति को कम करता है। सुपरऑक्साइड बहुत ही आम मुक्त कण है। यह त्वचा की दोनों परतों में पाया जाता है और स्वस्थ फाइब्रोब्लास्ट (जो त्वचा बनाने वाली कोशिकाए हैं) के निर्माण में सहायक हैं। एस ओ डी शरीर में जिंक, तांबा और मेंगनीज की उपयोगिता बढ़ाते हैं।
एस ओ डी उत्कृष्ट प्रति-ऑक्सीकारक और शोथ निवारक है, और मुक्त कणों के प्रभाव से बनने वाली झुर्रियों और त्वचा की जीर्णता को कम करता है। अनुसंधानकर्ता कहते हैं कि जैसे जैसे हम प्रौढ़ता की ओर अग्रसर होते हैं शरीर में एस ओ डी की मात्रा कम होती जाती है। सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज उनमें विद्यमान धातुओं के आधार पर तीन वर्गों में बांटे गये हैं।
1.तांबा जिंक एस ओ डी जो कोशिका के साइटोप्लाज्म की सुरक्षा करते हैं।
2.मेंगनीज एस ओ डी जो माइटोकोन्ड्रिया की सुरक्षा करते हैं।
3.निकल एस ओ डी जो कोशिकाओं के बाहर रहते हैं।
एस ओ डी आर्थ्राइटिस, पुरुष ग्रंथि रोग, कैंसर, कोर्नियल अल्सर, जलने से हुए घावों, आइ बी एस और धूम्रपान, विकिरण और कैंसररोधी दवाओं के दुष्प्रभाओं के उपचार में सहायक हैं। इसकी क्रीम चेहरे की झुर्रियों, जलने से हुए घावों , त्वचा के घावों व गहरे दाग धब्बों आदि में बहुत उपयोगी है। यह हानिकारक यू वी किरणों से त्वचा की रक्षा करता हैं।
गेहूँ के ज्वारे, ब्रोकॉली, पत्तागोभी, जौ की घास और हरे पत्तेवाली तरकारियां इसके प्रमुख स्रोत हैं। इसके इंजेक्शन, जीभ के नीचे रखने वाली तथा एंटेरिक कोटेड गोलियां और क्रीम उपलब्ध हैं। आमाशय में बनने वाले अम्ल इसे निष्क्रिय कर देते हैं, इसलिए इसे जीभ के नीचे रखने वाली या एंटेरिक कोटेड गोलियों के रूप में ही दिया जाता है।

म्यूको-पॉलीसेकराइड्स:-
म्यूको-पॉलीसेकराइड्स सामान्य और जटिल शर्कराओं का मिश्रण होता है जो शरीर के रख-रखाव के लिए महत्वपूर्ण है। शरीर की कोशिकाएं निरंतर क्षतिग्रस्त और नष्ट होती रहती हैं। कोशिकाओं के जीर्णोद्धार तथा नई कोशिकाओं के निर्माण कार्य भी साथ साथ चलता रहता है, जो जितना सुचारु और स्निग्धता से होता रहेगा हम उतना ही युवा व स्वस्थ बने रहेंगे। म्यूको-पॉलीसेकराइड्स खासतौर से हृदय और रक्त वाहिकाओं की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं के रख-रखाव के काम को प्राथमिकता से करते हैं।
पी4डी1:-
P4D1 एक ग्लूको-प्रोटीन है। यह प्रति-ऑक्सीकारक की भांति कार्य करता है। इसके तीन मुख्य कार्य हैं।
1.यह डी एन ए और आर एन ए, जो शरीर निर्माण का मुख्य आधार हैं, के जीर्णोद्धार तथा नवीनीकरण को प्रोत्साहित करते है। ये कोशिकाओं की आयुवृद्धि और असामान्य विभाजन में अवरोध पैदा करते हैं। और इस तरह हमें अपकर्षक (डीजनरेटिव) बीमारियों से बचाते हैं।
2.यह शरीर में शोथ को कम करता है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार यह कोर्टिजोन से भी ज्यादा शक्तिशाली शोथ निवारक है। कई इन्फ्लेमेट्री रोगों जैसे आर्थ्राइटिस आदि के उपचार में गेहूँ के ज्वारे का रस अत्यंत प्रभावशाली है।
3.यह कैंसर कोशिकाओं की भित्तियों को कमजोर बनाते हैं, ताकि रक्त के श्वेत कण कैंसर कोशिकाओं में सहजता से प्रवेश कर उन्हें नष्ट कर सकें।

क्लोरोफिल:-
गेहूँ के ज्वारे का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है क्लोरोफिल। यह क्लोरोप्लास्ट नामक विशेष प्रकार के कोषों में होता है। क्लोरोप्लास्ट सूर्यकिरणों की सहायता से पोषक तत्वों का निर्माण करते हैं। यही कारण है कि वैज्ञानिक डॉ. बर्शर क्लोरोफिल को “संकेन्द्रित सूर्यशक्ति” कहते हैं। वैसे तो हरे रंग की सभी वनस्पतियों में क्लोरोफिल होता है, किंतु गेहूँ के ज्वारे का क्लोरोफिल श्रेष्ट है, क्योंकि क्लोरोफिल के अलावा इनमें 100 अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं।
सभी जानते हैं कि मानव रक्त में हीमोग्लोबिन होता है। इस हीमोग्लोबिन में एक लाल रंग का द्रव्य होता है जिसे हीम कहते हैं। हीम और क्लोरोफिल की रासायनिक संरचना में बहुत समानता होती है। दोनों में कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के परमाणुओं की संख्या तथा उनका विन्यास लगभग एक जैसा होता है। हीम और क्लोरोफिल की संरचना में केवल एक ही अंतर है, क्लोरोफिल के केन्द्र स्थान में मेग्नीशियम होता है, जबकि हीमोग्लोबिन के केन्द्र स्थान में लौहा होता है।
हमारा रक्त हल्का क्षारीय है और उसका हाइड्रोजन अणु गुणांक pH 7.4 है। ज्वारे का रस भी हल्का क्षारीय है और उसका pH भी 7.4 है। इसलिए ज्वारे का रस शीघ्रता से रक्त में अवशोषित हो जाता है और शरीर के उपयोग में आने लगता है।
गेहूँ के ज्वारे से मानव को संपूर्ण पोषण मिल जाता है। सावधानी पूर्वक चुनी हुई 23 किलो तरकारियों जितना पोषण 1 किलो गेहूँ के ज्वारे के रस से प्राप्त हो जाता है। सिर्फ ज्वारे का रस पीकर मानव पूरा जीवन बिता सकता है। 100 ग्राम ताजा रस में 90-100 मि.ग्राम क्लोरोफिल प्राप्त हो जाता है।
क्लोरोफिल से हमें मेग्नीशियम प्राप्त होता है। हमारी प्रत्येक कोशिका में मेग्नीशियम सूक्ष्म मात्रा में होता है। परंतु यह शरीर के लिए है बहुत महत्वपूर्ण। संपूर्ण शरीर में लगभग 50 ग्राम मेग्नीशियम होता है। मेग्नीशियम हमारी अस्थियों के निर्माण के लिए आवश्यक खनिज है। यह नाड़ियों और मांसपेशियों को तनाव रहित अवस्था में रखता है। शरीर में कैल्शियम और विटामिन सी का संचालन, नाड़िओं और मांसपेशियों की उपयुक्त कार्यशीलता के लिये मैग्नेशियम आवश्यक है। कैल्शियम-मैग्नेशियम सन्तुलन में गड़बड़ी आने से स्नायु-तंत्र दुर्बल हो सकता है। मैग्नेशियम शरीर के भीतर लगभग तीन सौ ऍन्जाइम्स की सक्रियता के लिए आवश्यक है। मैग्नेशियम के निम्न स्तरों और उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह में स्पष्ट अंतर्संबंध स्थापित हो चुका है। व्यायाम एवं शारीरिक मेहनत करने वाले लोगों को मैग्नेशियम सम्पूरकों की आवश्यकता है। मैग्नेशियम की कमी से महिलाओं में कई समस्याएं दिखाई देती हैं, जैसे पाँवों की मांसपेशियाँ कमजोर होना (जिससे रेस्टलेस लेग सिंड्रोम होता है), पाँवों में बिवाइयां फटना, पेट की गड़बड़ी, एकाग्रता में कमी, रजोनिवृत्ति संबंधी समस्याओं का बढ़ना, मासिक-धर्म पूर्व के तनाव में वृद्धि आदि।

क्लोरोफिल से लाभ :-
क्लोरोफिल हमें तीन प्रकार से लाभ देता है।
1.शोधन – घावों के लिए क्लोरोफिल अत्यंत प्रबल कीटाणुनाशक है। यह फंगसरोधी भी है और शरीर से टॉक्सिन्स को विसर्जन करता है। । यह कई रोग पैदा करने वाले जीवाणु को नष्ट करता है और उनके विकास को बाधित करता है। यकृत का शोधन करता है।
2.एंटी-इन्फ्लेमेट्री – यह शरीर में इन्फ्लेमेशन को कम करता हैं। अतः आर्थ्राइटिस, आमाशय शोथ, आंत्र शोथ, गले की ख़राश आदि में अत्यंत लाभदायक हैं।
3.पोषण – यह रक्त बनाता है, आंतों के लाभप्रद कीटाणुओं को भी पोषण देते हैं।
रस के औषधीय उपयोग
1- कैंसर गेहूँ के ज्वारे कैंसर पर कैसे असर दिखाते है???
ऑक्सीजन को अनुसंधानकर्ता कैंसर कोशिकाओं को नेस्तनाबूत करने वाली 7.62×39 मि.मी. केलीबर की वो गोली मानते हैं, जो गेहूँ के ज्वारे रूपी ए.के. 47 बंदूक से निकल कर कैंसर कोशिकाओं को चुन-चुन कर मारती है। सर्व प्रथम तो इसमें भरपूर क्लोरोफिल होता है, जो शरीर को ऑक्सीजन से सराबोर कर देता है। क्लोरोफिल शरीर में हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है, मतलब कैंसर कोशिकाओं को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है और ऑक्सीजन की उपस्थिति में कैंसर का दम घुटने कगता है।
गेहूँ का ज्वारों में विटामिन बी-17 या लेट्रियल और सेलेनियम दोनों होते हैं। ये दोनों ही शक्तिशाली कैंसररोधी है। क्लोरोफिल और सेलेनियम शरीर की रक्षा प्रणाली को शक्तिशाली बनाते हैं। गेहूँ का ज्वारा भी रक्त के समान हल्का क्षारीय द्रव्य है। कैंसर अम्लीय माध्यम में ही फलता फूलता है।
गेहूँ का ज्वारा में विटा-12 को मिला कर 13 विटामिन, कई खनिज जैसे सेलेनियम और 20 अमाइनो एसिड्स होते है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट किण्वक सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज और अन्य 30 किण्वक भी होते हैं। एस ओ डी सबसे खतरनाक फ्री-रेडिकल रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पिसीज को हाइड्रोजन परऑक्साइड (जिसमें कैंसर कोशिका का सफाया करने के लिए एक अतिरिक्त ऑक्सीजन का अणु होता है) और ऑक्सीजन के अणु में बदल देता है।
सन् 1938 में महान अनुसंधानकर्ता डॉ. पॉल गेरहार्ड सीजर, एम.डी. ने बताया था कि कैंसर का वास्तविक कारण श्वसन क्रिया में सहायक एंजाइम साइटोक्रोम ऑक्सीडेज का नष्ट होना है। सरल शब्दों में जब कोशिका में ऑक्सीजन उपलब्ध न हो या सामान्य श्वसन क्रिया बाधित हो जाये तभी कैंसर जन्म लेता है।
ज्वारों में एक हार्मोन एब्सीसिक एसिड (ए बी ए) होता है जो हमें अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है। डॉ. लिविंग्स्टन व्हीलर के अनुसार एब्सीसिक एसिड कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन हार्मोन को निष्क्रिय करता है और वे ए बी ए को कैंसर उपचार का महत्वपूर्ण पूरक तत्व मानती थी। डॉ. लिविंग्स्टन ने पता लगाया था कि कैंसर कोशिका कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन से मिलता जुलता हार्मोन बनाती हैं। उन्होंने यह भी पता लगाया था कि गेहूँ के ज्वारे को काटने के 4 घंटे बाद उसमें ए बी ए की मात्रा 40 गुना ज्यादा होती है। अतः उनके मतानुसार ज्वारे के रस को थोड़ा सा तुरंत और बचा हुआ 4 घंटे बाद पीना चाहिये।
1- गेहूँ के ज्वारे में अन्य हरी तरकारियों की तरह भरपूर ऑक्सीजन होती है। मस्तिष्क और संपूर्ण शरीर ऊर्जावान तथा स्वस्थ रखने के लिए भरपूर ऑक्सीजन आवश्यक है।
2- डॉ. बरनार्ड जेन्सन के अनुसार गेहूँ के ज्वारे का रस कुछ ही मिनटों में पच जाता है और इसके पाचन में बहुत कम ऊर्जा खर्च होती है।
3- यह कीटाणुरोधी हैं, उन्हें नष्ट करता है और उनके विकास को बाधित करता है।
4- यह शरीर से हानिकारक पदार्थों (टॉक्सिन्स), भारी धातुओं और शरीर में जमा दवाओं के अवशेष का विसर्जन करता है।
5- यदि इसका सेवन 7-8 महीने तक किया जाये तो यह मुहाँसों और उनसे बने दाग, धब्बे और झाइयां सब साफ हो जाते हैं।
6- यह त्वचा के लिए प्राकृतिक साबुन का कार्य करता हैं और शरीर को दुर्गंध रहित रखता है।
7- यह दांतों को सड़न से बचाते है।
8- यदि 5 मिनिट तक गेहूँ के ज्वारे का रस मुंह में तो दांत का दर्द ठीक करता है।
9- इसके गरारे करने से गले की खारिश ठीक हो जाती है।
10- गेहूँ के ज्वारे का रस नियमित पीने से एग्जीमा और सोरायसिस भी ठीक हो जाते हैं।
11- ज्वारे का रस पीने से बाल समय से पहले सफेद नहीं होते हैं।
12- ज्वारे का रस पीने से शरीर स्वस्थ, ऊर्जावान, सहनशील, आध्यात्मिक और प्रसन्नचित्त बना रहता है।
13- यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
14- यह समस्त रक्त संबन्धी रोगों के लिए रामबाण औषधि है।
15- ज्वारे का रस का एनीमा लेने से आंतों और पेट के अंगों का शोधन होता है।
16- यह कब्जी ठीक करता है।
17- यह उच्च रक्तचाप कम करता है और केशिकाओं ( Fine blood vessels or capillaries) का विस्तारण करता है।
18- यह स्थूलता या मोटापा कम करता है क्यों कि यह भूख कम करता है, बुनियादी चयापचय दर और शरीर में रक्त के संचार को बढ़ाता है।

उगाने की विधि:-
घर पर गेहूँ के ज्वारे बनाना के लिए इन चीजों की आवश्यकता होगी।
आवश्यक सामान 1-अच्छी किस्म के जैविक गेहूँ के बीज। 2-अच्छी उपजाऊ मिट्टी और उम्दा जैविक या गोबर की खाद। 3-मिट्टी के 10-12” व्यास के 3-4” गहरे सात गोलाकार गमले जिसमें भी नीचे छेद हों। आप अच्छे प्लास्टिक की 20”x10”x2” नाप की गार्डनिंग ट्रे, जिसमें नीचे कुछ छेद हो, भी ले सकते है। गेहूँ भिगोने के लिए कोई पात्र या जग। 4-मिक्सी या ज्यूसर। 5-पानी देने के लिए स्प्रे-बोटल या पौधों को पानी पिलाने वाला झारा व कैंची। विधि 1- हमेशा जैविक बीज ही काम में लें, ताकि आपको हमेशा मधुर व उत्कृष्ट रस प्राप्त हो जो विटामिन और खनिज से भरपूर हो । रात को सोते समय लगभग 100 ग्राम गेहूँ एक जग में भिगो कर रख दें। 2- सभी गमलों के छेद को एक पतले पत्थर के टुकड़े से ढक दें। अब मिट्टी और खाद को अच्छी तरह मिलाएं। गमलों में मिटटी की डेढ़ दो इंच मोटी परत बिछा दें और पानी छिड़क दें। ध्यान रहे मिट्टी में रासायनिक खाद या कीटनाषक के अवशेष न हों और हमेशा जैविक खाद का ही उपयोग करें। पहले गमले पर रविवार, दूसरे गमले पर सोमवार, इस प्रकार सातों गमलो पर सातों दिनों के नाम लिख दें। 3- अगले दिन गेहुंओं को धोकर निथार लें। मानलो आज रविवार है तो उस गमले में, जिस पर आपने रविवार लिखा था, गेहूँ एक परत के रूप में बिछा दें। गेहुंओं के ऊपर थोड़ी मिट्टी डाल दें और पानी से सींच दें। गमले को किसी छायादार स्थान जैसे बरामदे या खिड़की के पास रख दें, जहां पर्याप्त हवा और प्रकाश आता हो पर धूप की सीधी किरणे गमलों पर नहीं पड़ती हो। अगले दिन सोमवार वाले गमले में गेहूँ बो दीजिये और इस तरह रोज एक गमले में गेहूँ बोते रहें। 4- गमलों में रोजाना कम से कम दो बार पानी दें ताकि मिट्टी नम और हल्की गीली बनी रहे। शुरू के दो-तीन दिन गमलों को गीले अखबार से भी ढक सकते हैं। जब गैहूँ के ज्वारे एक इंच से बड़े हो जाये तो एक बार ही पानी देना प्रयाप्त रहता है। पानी देने के लिए स्प्रे बोटल का प्रयोग करे। गर्मी के मौसम में ज्यादा पानी की आवश्यकता रहती है। पर हमेशा ध्यान रखे कि मिट्टी नम और गीली बनी रहे और पानी की मात्रा ज्यादा भी न हो। 5- सात दिन बाद 5-6 पत्तियों वाला 6-8 इन्च लम्बा ज्वारा निकल आयेगा। इस ज्वारे को जड़ सहित उखाड़ ले और पानी से अच्छी तरह धो लीजिए। इस तरह आप रोज एक गमले से ज्वारे तोड़ते जाइये और रोज एक गमले में ज्वारे बोते भी जाइये ताकि आपको निरन्तर ज्वारे मिलते रहे। 6- अब धुले हुए ज्वारों की जड़ काट कर अलग कर दें तथा मिक्सी के छोटे जार में थोड़ा पानी डालकर पीस लें और चलनी से गिलास में छानकर प्रयोग करे। ज्वारों के बचे हुए गुदे को आप त्वचा पर निखार लाने के लिए मल सकते हैं। आप हाथ से घुमाने वाले ज्यूसर से भी ज्यूस निकाल सकते हैं।

सेवन का तरीका:-
ज्वारे का रस सामान्यतः 60-120 एमएल प्रति दिन या प्रति दूसरे दिन खाली पेट सेवन करना चाहिये। यदि आप किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो 30-60 एमएल रस दिन मे तीन चार बार तक ले सकते हैं। इसे आप सप्ताह में 5 दिन सेवन करें। कुछ लोगों को शुरू में रस पीने से उबकाई सी आती है, तो कम मात्रा से शुरू करें और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ायें। ज्वारे के रस में फलों और सब्जियों के रस जैसे सेब फल, अन्नानास आदि के रस को मिलाया जा सकता है। हां इसे कभी भी खट्टे रसों जैसे नीबू, संतरा आदि के रस में नहीं मिलाएं क्योंकि खटाई ज्वारे के रस में विद्यमान एंजाइम्स को निष्क्रिय कर देती है। इसमें नमक, चीनी या कोई अन्य मसाला भी नहीं मिलाना चाहिये। ज्वारे के रस की 120 एम एल मात्रा बड़ी उपयुक्त मात्रा है और एक सप्ताह में इसके परिणाम दिखने लगते हैं। डॉ. एन विग्मोर ज्वारे के रस के साथ अपक्व आहार लेने की सलाह भी देती थी।

गेहूँ के ज्वारे चबाने से गले की खारिश और मुंह की दुर्गंध दूर होती है। इसके रस के गरारे करने से दांत और मसूड़ों के इन्फेक्शन में लाभ मिलता है। स्त्रियों को ज्वारे के रस का डूश लेने से मूत्राशय और योनि के इन्फेक्शन, दुर्गंध और खुजली में भी आराम मिलता है। त्वचा पर ज्वारे का रस लगाने से त्वचा का ढीलापन कम होता है और त्वचा में चमक आती है।

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कैंसर का उपचार

cancer

कैंसर एक बहुत ज्यादा खतरनाक बीमारी है। यह शरीर के किसी भी भाग में एक गांठ के रूप में दिन-प्रतिदिन बढ़ने वाली बीमारी है। जब तक इस रोग के होने का लक्षण पता चलता है तब तक तो यह बीमारी शरीर में बहुत ज्यादा फैल चुकी होती है। यदि कैंसर रोग शरीर के किसी भी अंग में दिखाई देता है तो भी यह पूरे शरीर का रोग है इसलिए इसका उपचार करते समय यह ध्यान देना जरूरी है कि इसका इलाज स्थानीय उपचार करने के साथ-साथ पूरे शरीर को दोषमुक्त बनाने के लिए करना चाहिए। इस रोग से बचने के लिए जैसे ही इसके लक्षण पता चले तुरन्त ही इसका इलाज शुरू कर देना चाहिए।

कैंसर रोग होने के लक्षण-

जब किसी व्यक्ति को कैंसर रोग हो जाता है तो उस व्यक्ति के मलमूत्र की आदत में काफी अन्तर आ जाता है।
इस रोग के होने पर व्यक्ति को खांसी या गले में बार-बार घरघराहट होती रहती है।
इस रोग में रोगी के शरीर का वजन दिन-प्रतिदिन गिरने लगता है।
कैंसर रोग में स्त्रियों को मासिकधर्म में काफी अन्तर दिखाई देने लगता है तथा मासिकधर्म के बीच-बीच में रक्तस्राव भी होता है। वैसे देखा जाए तो हर बार मासिकधर्म में कुछ न कुछ रक्त जरूर ही निकलता है लेकिन कैंसर रोग होने पर रक्तस्राव तेज होने लगता है।
कैंसर रोग से पीड़ित रोगी को भूख कम लगने लगती है।
कैंसर के रोगी के शरीर में कहीं घाव हो जाता है तो उसका घाव जल्दी ठीक नहीं होता है।
कैंसर रोग में रोगी के स्तन या शरीर के किसी भाग में एक गांठ सी बन जाती है और यह गांठ दिन प्रतिदिन बढ़ने लगती है।
रोगी व्यक्ति जब मलत्याग (शौच करना) करता है तो उसके मल से कुछ मात्रा में खून  तथा मवाद भी निकलने लगता है।
कैंसर रोग से पीड़ित रोगी की त्वचा के रंग में कुछ परिवर्तन होने लगता है।
कैंसर रोग से पीड़ित रोगी को अपच की समस्या रहती है तथा उसे खाने को निगलने में कठिनाई होती है।

कैंसर रोग होने का कारण:-

कैंसर रोग होने का सबसे प्रमुख कारण दूषित भोजन का सेवन करना है।

धूम्रपान करने से या धूम्रपान करने वाले के संग रहने से कैंसर रोग हो सकता है।
गुटका, पान मसाला, गुटका, शराब तथा तम्बाकू का सेवन करने से कैंसर रोग हो सकता है।
अधिक (श्रम) कार्य करना तथा आराम की कमी के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।
बासी भोजन, सड़ी-गली चीजें तथा बहुत समय से फ्रिज में रखे भोजन को खाने से कैंसर रोग हो सकता है।
तेल, घी को कई बार गर्म करके सेवन करने से भी कैंसर रोग हो सकता है।
दांत, कान, आंख, मलद्वार, मूत्रद्वार तथा त्वचा की सफाई ठीक तरह से न करने के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।
बारीक आटा, चावल, मैदा तथा रिफाइंड का अधिक सेवन करने के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।
गंदे पानी का सेवन करने के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।
एल्युमिनियम तथा प्लास्टिक के बर्तनों में अधिक भोजन करने के कारण कैंसर रोग हो सकता है।
चीनी, नमक, चाय, कॉफी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ तथा मांस का भोजन में अधिक उपयोग करने के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।
तनाव, भय तथा अधिक चिंता करने के कारण कैंसर रोग हो सकता है।
बहुत अधिक औषधियों का सेवन तथा एक्स-रे कराने से कैंसर रोग हो सकता है।
अप्राकृतिक तथा बिना रेशेदार भोजन का सेवन करने के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।
बहुत अधिक मिलावटी खाद्य पदार्थ (वह खाद्य पदार्थ जिसमें कंकड़, मिट्टी, तथा अन्य चींजे मिली हुई) का भोजन में सेवन करने के कारण भी कैंसर रोग हो जाता है।
भोजन में तेल मसालों का अधिक सेवन करने के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।
गलत तरीके से भोजन बनाने तथा खाने से भी कैंसर रोग हो सकता है।
रासायनिक पदार्थों तथा रंगों का प्रयोग करने से कैंसर रोग हो सकता है।
कृत्रिम व तंग वस्त्रों का अधिक प्रयोग करने के कारण कैंसर रोग हो सकता है।
अधिक खाना खाने से भी कैंसर रोग हो सकता है।
पेट में कब्ज बनने के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।
शरीर में विटामिन `ए´ तथा `सी´ की कमी हो जाने के कारण भी कैंसर रोग हो सकता है।

कैंसर रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

कैंसर रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले उसके शरीर पर स्थानीय उपचार करने के साथ-साथ पूरे शरीर का उपचार करना चाहिए ताकि उसका शरीर दोषमुक्त हो सके।
कैंसर रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को नींबू के रस का पानी पीकर उपवास रखना चाहिए और इसके बाद कुछ दिनों तक केवल अंगूर का रस पीना चाहिए।
कैंसर रोग से पीड़ित रोगी यदि 6 महीने तक अंगूर का रस लगतार पीए तो उसे बहुत अधिक लाभ होता है।
इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के फलों के रस हैं जिसे पीकर कुछ दिनों तक उपवास रखे तो कैंसर रोग ठीक हो सकता है ये रस इस प्रकार हैं- संतरे का रस, नारियल पानी, अनन्नास का रस, गाजर का रस, तुलसी के पत्तों का रस, दूब का रस, गेहूं के ज्वारे का रस, पालक का रस, टमाटर का रस, पत्तागोभी का रस, पुदीने का रस, खीरे का रस, लौकी का रस, पेठे का रस तथा हरी सब्जियों का रस।
इस रोग से पीड़ित रोगी को भोजन में बिना पके हुए खाद्य-पदार्थों का सेवन करना चाहिए जैसे-हरी सब्जियां, कच्चा नारियल पानी, अंकुरित अन्न, भीगी हुई किशमिश, मुनक्का, अंजीर तथा सभी प्रकार के मौसम के ताजा फल आदि।
कैंसर रोग से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन 1 ग्राम हल्दी खाए तो उसका यह रोग ठीक हो जाता है।
1 चम्मच तुलसी का रस तथा 1 चम्मच शहद को सुबह के समय चाटने से कैंसर रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
नीम तथा तुलसी के 5-5 पत्ते प्रतिदिन खाने से कैंसर रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
गले के कैंसर को ठीक करने के लिए छोटी हरड़ का टुकड़ा दिन में 2 बार भोजन करने के बाद चूसने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
पेट पर गर्म ठण्डा सेंक करने के बाद मिट्टी की पट्टी करें तथा इसके बाद एनिमा क्रिया करें इससे कैंसर रोग में बहुत अधिक लाभ मिलता है। इस प्रकार से रोगी का उपचार करने के बाद रोगी को 5-10 मिनट तक कटिस्नान करना चाहिए। फिर सप्ताह में 2 बार शरीर की चादर लपेट तथा सप्ताह में एक बार पूरे शरीर पर भाप से स्नान करना चाहिए। इस प्रकार से रोगी व्यक्ति यदि अपना उपचार कुछ दिनों तक करता है तो कैंसर रोग ठीक होने लगता है।
कैंसर रोग से पीड़ित रोगी को थोड़े समय के लिए प्रतिदिन नंगे बदन धूप में अपने शरीर की सिंकाई करनी चाहिए। इससे रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसका रोग ठीक होने लगता है।
रोगी के जिस अंग पर सूजन तथा दर्द हो रहा हो उस पर बर्फ के पानी की ठंडी पट्टी रखने से बहुत अधिक लाभ मिलता है।
कैंसर रोग से पीड़ित रोगी को खुली हवा में विश्राम करना चाहिए तथा मानसिक चिंता-फिक्र को दूर करना चाहिए।
कैंसर रोग का इलाज कराते समय रोगी व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत होना चाहिए और फिर प्राकृतिक चिकित्सा से अपना उपचार कराना चाहिए।
गो-मूत्र का सेवन करने से कैंसर रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

कैंसर रोग से पीड़ित रोगी के लिए कुछ परहेज:-

–  इस रोग से पीड़ित रोगी को भूख से अधिक और गरम खाना नहीं खाना चाहिए।
–  इस रोग से पीड़ित रोगी को मांस नहीं खाना चाहिए।
–  भोजन को अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें तेज मसालों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
–  भोजन में सुगन्ध वाले पदार्थों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
–  इस रोग से पीड़ित रोगी को बहुत कम पानी पीना चाहिए।
–  रोगी व्यक्ति को चीनी अधिक का सेवन नहीं करना चाहिए।
–  कैंसर के रोगी को तम्बाकू, शराब, धूम्रपान तथा नशीली चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
–  रोगी को चाय, कॉफी का सेवन बहुत ही कम मात्रा में करना चाहिए।
–  पेशाब तथा मल के वेग को नहीं रोकना चाहिए।
–  कैंसर रोग से पीड़ित रोगी के सम्पर्क में तारकोल, पिच, बैंजाइन, पाराफिन, कार्बोलिक एसिड तथा एनिलाइन और कजली को नहीं लाना चाहिए, क्योंकि ये पदार्थ रोगी के मुंह के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जिसके कारण उसकी अवस्था और खराब हो सकती है।

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चश्में के नंबर कम करना

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एक चने के दाने जितनी फिटकरी को सेंककर सौ ग्राम गुलाबजल में डालें और रोजाना रात को सोते समय इस गुलाबजल की चार-पांच बूंद आंखों में डाले साथ पैर के तलवों पर घी की मालिश करें इससे चश्में के नंबर कम हो जाते हैं।
कनपटी पर गाय के घी की हल्के हाथ से रोजाना कुछ देर मसाज करने पर आंखों की रोशनी बढ़ती है

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बौनापन का उपचार

बौनापन या छोटापन कोई रोग नहीं हैं। बहुत से व्यक्ति छोटे कद वाले होते हैं। उन्हें अपनी लम्बाई बढ़ाने की चाह तो होती है लेकिन वे किसी प्रकार से अपनी लम्बाई नहीं बढ़ा पाते हैं। क्योंकि मनुष्य की ऊंचाई के साथ उसके व्यक्तित्व का गहरा सम्बन्ध होता है।

बौना होने का कारण:-

हमारी रीढ़ की हडि्डयों के छोटे-छोटे 32 टुकड़े होते हैं जिन्हें कशेरुकाएं कहते हैं। ये टुकड़े आपस में एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। इन कशेरुकाओं के बीच में मुलायम तंतुओं के गद्दे होते हैं। इन्हें उपास्थि कहते हैं। ये कशेरुकाएं रबड़ की तरह लचीली होती हैं। किसी कारण से जब इनमें रक्त (खून) संचारण नहीं होता है तो इनका विकास रुक जाता है जिसके कारण व्यक्ति का कद छोटा रह जाता है।

जब किसी व्यक्ति की रीढ़ पर गलत तरीके से बोझ पड़ने लगता है तो शरीर की हडि्डयों की झिल्लियों का लोच सिकुड़ जाता है, लेकिन आराम मिलने से या सही तरीके से बोझ पड़ने से वे अपने आप ही बढ़ जाती हैं। यदि रीढ़ की हड्डी कमान की तरह झुकाई न जाए और उठते-बैठते समय या फिर चलते-सोते समय सीधी रखी जाए तो मात्र कुछ ही दिनों में शरीर का कद बढ़ाया जा सकता है।

कद बढ़ाने के लिए प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-

ऊंचाई बढ़ाने के लिए सबसे पहले व्यक्ति को ऐसे भोजन का सेवन करना चाहिए, जो शरीर के खून को शुद्ध बना सके और शरीर के दूषित द्रव्य को पेशाब के द्वारा बाहर कर सके। इसलिए रोगी व्यक्ति को अपने भोजन में फल, मेवे, शहद, मट्ठा, दही, दूध, तथा उबली और कच्ची साग-सब्जियों आदि खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
व्यक्ति को हर समय सीधा तनकर बैठना या खड़ा होना चाहिए। इसके अलावा छाती को आगे को निकालकर तथा गर्दन सीधी रखकर बैठना-उठना चाहिए।
कद लम्बा करने के लिए व्यक्ति को कुर्सी पर बैठते समय पीठ सीधी करके कुर्सी पर बैठना चाहिए या फिर डेस्क या मेज पर झुकते समय पीठ को एक लाइन में सीधा झुकाना चाहिए न कि पीठ के दो हिस्से करके। व्यक्ति को चलते समय पीठ सीधी, कन्धे पीछे की ओर झुके हुए, सीना आगे की ओर निकला हुआ तथा हाथ दीवार की अलार्म वाली घड़ी के पैन्डलूम की तरह झुकाते हुए रहने चाहिए। व्यक्तियों को सोते समय अपनी पीठ और पैर एक सीध में रखने चाहिए। इन सभी सावधानियों का पालन करने पर ही व्यक्ति की लम्बाई बढ़ सकती है।
व्यक्तियों का कद लम्बा करने के लिए कई प्रकार के आसन हैं जिन्हें प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय करने से कुछ ही महीनों में व्यक्ति का कद बढ़ने लगता है। ये आसन तथा यौगिक क्रियाएं इस प्रकार हैं- पश्चिमोत्तानासन, शीर्षासन, भुजंगासन, हलासन, उडि्डयान तथा नौलिक्रिया आदि।
लम्बाई बढ़ाने के लिए व्यक्ति को गहरी श्वास की कसरतें तथा शारीरिक व्यायाम करने चाहिए। जिसके फलस्वरूप ही लम्बाई बढ़ाई जा सकती है।
व्यक्ति को लम्बाई बढ़ाने के लिए सबसे पहले सुबह के समय में किसी खुले स्थान पर सीधे खड़े हो जाना चाहिए। इसके बाद अपने दोनों हाथों को बगल में लटकाते हुए सीधा खड़ा रहना चाहिए। इसके बाद अपनी नाक से सांस अन्दर लेते हुए दोनों हाथों को बगल से धीरे-धीरे ऊपर उठाना चाहिए ताकि वह कन्धों की सीध में आ जाएं। इस अवस्था में व्यक्ति को अपने हाथ सीधे तानकर रखने चाहिए। इस अवस्था में कुछ समय में रहें। इसके बाद अपने हाथों को पीछे की ओर ले जाएं। इसके बाद अपने सिर को थोड़ा पीछे झुका लें और फेफड़ों में थोड़ी हवा और भर लें। व्यक्ति को कुछ समय इस स्थिति में रहना चाहिए। फिर धीरे-धीरे अपनी श्वास को छोड़ना चाहिए। इसके बाद रोगी को पहले की स्थिति में आ जाना चाहिए। इस व्यायाम को प्रतिदिन करने से कुछ ही महीनों में लम्बाई बढ़ने लगती है।
लम्बाई बढ़ाने के लिए व्यक्ति को सुबह तथा शाम के समय में खुली हवा में व्यायाम करना चाहिए। व्यक्ति को सबसे पहले बिल्कुल सीधा खड़ा हो जाना चाहिए। इसके बाद अपने दोनों हाथों को कन्धे की ऊंचाई तक ऊपर उठाना चाहिए और श्वास को अन्दर की ओर खींचना चाहिए जिससे हवा फेफड़े में भर जाती है। इसके बाद कुछ समय के लिए ऐसे ही खड़े रहें और इसके बाद अपने हाथों को धीरे-धीरे ऊपर उठाते हुए पंजों के ऊपर खड़े हो जाएं तथा श्वास भीतर खींचकर फेंफड़ों में हवा भरे। इस स्थिति में व्यक्ति को कुछ समय के लिए रुकना चाहिए और धीरे-धीरे श्वास को छोड़ना चाहिए। इस प्रकार से व्यायाम प्रतिदिन करने से कुछ ही महीनों में लम्बाई बढ़ने लगती है।
व्यक्ति को अपनी लम्बाई बढ़ाने के लिए सबसे पहले सुबह के समय में सीधे खड़े हो जाना चाहिए। इसके बाद अपने सिर को सीधा करके कंधों को थोड़ा पीछे की ओर झुकाना चाहिए और अपने दोनों हाथों की उंगुलियों को मजबूती से आपस में फंसाकर दोनों हथेलियों को सिर के पिछले भाग पर रखना चाहिए। इस अवस्था में व्यक्ति को अपनी गर्दन को कड़ा रखना चाहिए और दोनों हाथों से सिर को बलपूर्वक धीरे-धीरे नीचे की ओर इतना झुकाना चाहिए कि ठोड़ी छाती से जा लगे। इस अवस्था में व्यक्ति को कुछ समय के लिए रुकना चाहिए। इसके बाद सिर को पीछे की ओर धीरे-धीरे जहां तक सम्भव हो उठाएं। इस समय हाथों पर दबाव कम रखना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन व्यायाम करने से कुछ ही महीनों में लम्बाई बढ़ने लगती है।

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